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इंकलाब

है सूरज इस जहाँ में, तो चमकती धूप, कभी न कभी तो होगी | है नमी जो बादलों में, तो खनकती बारिश, कभी न कभी तो होगी | हैं सितारें जो आसमान में, तो सुहानी रात, कभी न कभी तो होगी | है पहर अगर भोर की, तो सुनहरी सुबह, कभी न कभी तो होगी | है आग अगर सीने में, तो रौशनी, कभी न कभी तो होगी | है मंज़िल अगर आँखों में, तो तमन्ना पूरी, कभी न कभी तो होगी | है चुनौती अगर राहों में, तो जीत, कभी न कभी तो होगी | है बुलंदी अगर इरादों में, तो सफ़लता कदम, कभी न कभी तो चूमेगी | हाँ, थी बेड़ियाँ अब तक, ग़ुलामी की पर आज़ाद अब सोच, हमारी होगी | हाँ, थी सिसकियाँ अब तक, दबी दबी पर हुंकार अब ललकार की, हमारी होगी | हाँ, थी इरादों में बात अब तक, समझौते की पर ज़िंदाबाद अब इंकलाबी, हमारी होगी | हाँ, थी ख़्वाहिश अब तक, जीने की पर तमन्ना अब सरफ़रोशी की, हमारी होगी | हाँ, थी दुनिया अब तक, तुम्हारी पर बारी अब, भारतवर्ष की होगी |

संजोग का साथ

मिला वो संजोग से, जुड़ा वो परछाई से, ख्यालों में उसका साया है, पर हाथों में न आया है । खिला वो कांटो में, चुभा वो फूलो में, ले गया जान वो, बस छोड़ गया सांसें वो । जीता रहा बूंदों में, बीता समय जुगो में, बना तीव्र चाहत वो, पर बना न आदत वो । दिन हो न रात हो, सांझ की न चादर हो, उम्र भर का न वादा हो, बस मेरे चेहरे में, तुम्हारी मुस्कुराहट का साथ हो ।

खोज परिश्रम की

ज़िन्दगी की तारीख़ में, अपने समय की कीमत, क्या आंकते हो । जिम्मेदारियों के बहाने, क्या, हर रोज़, खुदको सुनाते हो । नाकामयाबी से डरते हो, इस सच को, क्यों झुठलाते हो । अपने नादान ख्वाबों को, जीवित रखने कि कोशिश, हर रोज़ करते हो । केवल सोने की मोहर ही, सफलता का एक, न पैमाना हो । आंखों की चमक, हसी की धनक, उम्मीद की खनक, इनका मोल, अनमोल हो । न हो झिझक, अंजान भविष्य की । हो बस मिठास, हर कण में, अपने परिश्रम की ।

અબજો માં એક - મનુષ્ય

અબજો માં એક, તુ કમાલ છે. મનુષ્ય જીવન ની ભેટ, તુજ ને પ્રાપ્ત છે. પણ દેખા દેખી ની દોડ માં, તુ સવાર છે. સોના ની હરોળ માં, શ્રમ નો બગાડ છે. વહી જાશે સમય ની ધારા, પલક ની એક ઝપક માં. જો ગુલામી ના ઘરેણાં થી, તુજ નો શૃંગાર છે. ખરચી જો બે પળ, તુ ખુદ ની ઓળખ માં. આ અમાસ ની રાત માં પણ, તુ એક ઝળહળતી મશાલ છે. અબજો માં એક ના એક નો આ સવાલ છે.

शून्य

हज़ारों हैं, इस दुनिया में एक में भी उनमें समझ न पाता मेरी पहचान क्या सब में | चलतें हैं, सीधी रेखाओं में जुड़ूं क्या में भी उसमें ? समझ न पाता मेरी दास्ताँ क्या सब में | नीलाम करतें हैं सपने, सस्ते में बाँटू क्या मैं भी रूह, ख़ैरात में ? समझ न पाता मेरा इमान क्या सब में | जीते हैं, कोयले की खानों में फेकू क्या मैं भी दिया, कुवें में ? समझ न पाता मेरी लौ कहाँ सब में | शायद यह, वो सफ़र है जिसका कोई अंत नहीं कैसे हिम्मत जुटाऊं इसका कोई अंदाज़ा नहीं |   देखता हूँ, तेरी ओर बड़ी उम्मीद से क्या तुझे, उसकी दरकार नहीं ? सभी तो मानते तुझे ख़ुदा मेरी मुराद, क्यों पूरी नहीं ? रोशन कर इस जीवन को शून्य बनकर, ख़त्म होना में चाहता नहीं |

रेल की पटरी

ये  रेल की पटरी न जाने कहाँ से निकलती पर मेरे गाँव ये रूकती | आज में इसका मुसाफ़िर हूँ धमकते शहर तक में इसका हमसफ़र हूँ | गुज़रे ये उज्जड़े मकानों से वीरान खंडरो से | सिसकतीं आहटें दब गयीं हैं इस के शोर में | चमते जो गाँव थे दियों से जो रोशन थे आज अँधकार से सजे हैं | बेग़ैरत बदमाशों ने इनको लूटा है और हर नियम को तोडा है | शहर की ऊँची इमारतें कई आँखों का सपना है बुलंद इरादों ने, जो बुना है | आबाद है जीवन यहाँ जिसे संघर्ष ने सींचा है मज़बूत कंधो पर, ये टिका है | मुस्कुराहटों से सजा एक घर नज़र आता है तब जाके, अपना मकसद समझ आता है | फिर लौटे उन्नति वहाँ, जहाँ ग़रीबी का साया है | उन मासूमों को, अपनी मेहनत का हक़ मिले, जिन्होंने लोहा पीटकर, इन शहरों को सजाया है |

किस्मत

कैसी है ये बेरहम किस्मत ? कभी तो, सुबह की किरणों से उम्मीदों के दिए जलाती और मौका मिलते ही शाम के सायों से अँधकार के चार चाँद लगाती |

काफिर

हासिल करने का इरादा, सभी का होता है | पर लायक बनने की तमन्ना, हर कोई रखता नहीं | जन्नत का दीदार, सभी का सपना है | पर आग की भट्टी से गुज़रने का जज़्बा, हर कोई रखता नहीं | क्या ये फ़लसफ़ा मुमकिन है ? हमें लगता नहीं | इतनी आसानी से अगर मोहब्बत मिलती, तो, दुनिया में इतने काफिर होते नहीं |

मुसाफिर और किताब

एक किताब नजर आती है झांकती खिड़कियों पार सजी है मिट्टी की परतो से उलझी है जालो में हज़ार । भटका एक मुसाफिर है जो पहुंचा उसके पन्नों पार लेके अपने हाथों में तोड़े उसने ताले हज़ार । करता रहा कथन लबों से पढ़ता गया पंक्तियाँ अपार की महकती रहे उसके ज़हन में यह कहानी सालों हज़ार । बसाकर अपनी सांसों में चुरा ली उसने एक किताब चुकाता क्या किमत उसकी थी कोड़ियाँ उसके पास, गिंके हज़ार ।

भटका इंसान

परिभाषाएं जीवन की कुछ यूं बदली हैं प्यार की जगह पैसे ने ली है । इंसान की जरूरत बस दो रोटी की है पर आजादी की जगह बेड़ियों ने ली है । चक्रव्यू में यूं फसा है खुद को दुनिया को सौंप आया है । आंखें मूंदकर बस चल पड़ा है अपने तेज से अंजान रहा है । दुनिया तो एक परछाई है इस हकीकत से आज (वो) जुड़ा है । अपनी राह रचने का यह मौका अब नजर आया है । जीवन का हर क्षण फिर जिंदा पाया है ।

Tinge of Grey

Why isn't the world black and white Why has it shades of grey How do I make sense of intricacies When simplicity is my clay. Why are there no mutinies Why have we fallen away How do I mind orders When I can join the fray. Why is there no entropy Why have we stopped the play How do I control forces When freedom is my say. Why is there no nudity Why have charades everyday How do I adopt barbarity When humanity is my pay. The show must go on, they say. I must stay away, they say. Then, I must return to the woods, I say.

Creativity

Amazing is the process of creativity Germinating in the thoughts Of naive humans It fools them To become their dreams. Starts a journey Where chaos is ensued Leading to wars For the world likes The status quo. To rebel is not easy Chances of survival Are second to none And Everything might go Just down the drain. To put blood, sweat and tears In a lost cause Is an act of crazy As there is Comfort in safety. It requires destruction Of every existing mould But the fruits of labor Are very sweet. To bring into existence Thus unknown to the world Creating order from chaos To bring life into the dead. Is the prerogative Bestowed only Upon the Creator.

सफर

एक मुसाफ़िर के लिए, शहर बेगाने हैं उसके लिए तो, रास्ते ही अपने हैं उसके कारवाँ  में, कई राही, जुड़े और बिछड़े हैं एक पल के लिए, वो उसकी दुनिया है क्षण में ही, वो बंधन टूटते हैं इस सिलसिले ने, उसके दिल को दुखाया है खिल खिलाते लोगों से फिर भी, वो आकर्षित होता है नए रिश्तों से अब, वो डरता है दोराहे पे, वो रुका है एक ओर बसेरा है दूसरी तरफ, ज़माना!

मुक़द्दर

मुस्तक़बिल से डर के बैठा, तो मर मर के जिया | मुक़द्दर को अपने हाथों में लिया, तभी तो साँस लेना सीखा |

मौका

औरों की अमीरी पर, क्यूँ तू अपनी क़िस्मत कोंस्ता ? है ये तेरा मौका, तू क्यूँ ये ना सोचता !

गुस्ताख़ी

वाकिफ हु हैसियत से मेरी, फिर भी गुस्ताख़ी करता हूँ | पर कटे है मगर, उड़ने की ख्वाइश रखता हूँ |

महताब कुटिया

ज़िंदगी गुलज़ार है जिसकी, वोह फ़क़ीर है | बादशाह तो, रियासत की हिफाज़त में मसरूफ़ है | चमकता सूरज, महल की तारेकी के आगे बेबस है | और ये कुटिया तो, महताब से भी रोशन है |

मुलाकात

ये नज़ारें हैं, खुश होने के लिए | शहर काफी हैं, ग़मगीन होने के लिए |   यह आँसू है, तुम्हारी अमानत | इन्हें, दुनिया को दिखाते नहीं हैं | |

मुस्कुराहट

मुस्कुराने की वजह ढूंढता रहा तो, मुस्कुराहट रूठ गई | बेवजह मुस्कुराता रहा तो, मुस्कुराहट घर कर गई ||

दुर्दशा

ये क्या चित्र है मिट्टी का रक्षक साहूकार का मोहताज है !

ख़ूबसूरत घोंसला

इतनी ख़ूबसूरती इस दुनिया में बह ना जाएँ आँसू चिड़िया के घोंसले में

कैद पंछी

कैद पंछी निहारता आसमान को देख ना पाया वोह खुले पिंजरे को

महल या सुकून

महलो में रहकर भी, चैन नहीं | हीरे जवाहरातो से भी, ख़ुशी नहीं | क्या है राज़, इस जीवन का? जो सब कुछ हासिल कर, दिल को सुकून नहीं |

द्रौपदी

दुर्योधन का संहार प्रतिशोध है उसका | कायरता जब पुरुषों में हो तो पुरुषार्थ बल है उसका । समान दर्जा मांग है उसकी के कृष्ण सखा है उसका । निश्चय है दृढ़ उसका श्वेत रंग से नहीं, आत्म सम्मान के श्रृंगार से सौन्दर्य सजा है उसका ।

सैलाब की दो बूँदे

यूँ ही समंदर में तूफ़ान नहीं आता यूँ ही नदिया में बाढ़ नहीं आती फिर कैसे किसि की आँखों में यूँ ही सैलाब आ सकता है