ज़िंदगी गुलज़ार है जिसकी, वोह फ़क़ीर है | बादशाह तो, रियासत की हिफाज़त में मसरूफ़ है | चमकता सूरज, महल की तारेकी के आगे बेबस है | और ये कुटिया तो, महताब से भी रोशन है |
અબજો માં એક, તુ કમાલ છે. મનુષ્ય જીવન ની ભેટ, તુજ ને પ્રાપ્ત છે. પણ દેખા દેખી ની દોડ માં, તુ સવાર છે. સોના ની હરોળ માં, શ્રમ નો બગાડ છે. વહી જાશે સમય ની ધારા, પલક ની એક ઝપક માં. જો ગુલામી ના ઘરેણાં થી, તુજ નો શૃંગાર છે. ખરચી જો બે પળ, તુ ખુદ ની ઓળખ માં. આ અમાસ ની રાત માં પણ, તુ એક ઝળહળતી મશાલ છે. અબજો માં એક ના એક નો આ સવાલ છે.
हज़ारों हैं, इस दुनिया में एक में भी उनमें समझ न पाता मेरी पहचान क्या सब में | चलतें हैं, सीधी रेखाओं में जुड़ूं क्या में भी उसमें ? समझ न पाता मेरी दास्ताँ क्या सब में | नीलाम करतें हैं सपने, सस्ते में बाँटू क्या मैं भी रूह, ख़ैरात में ? समझ न पाता मेरा इमान क्या सब में | जीते हैं, कोयले की खानों में फेकू क्या मैं भी दिया, कुवें में ? समझ न पाता मेरी लौ कहाँ सब में | शायद यह, वो सफ़र है जिसका कोई अंत नहीं कैसे हिम्मत जुटाऊं इसका कोई अंदाज़ा नहीं | देखता हूँ, तेरी ओर बड़ी उम्मीद से क्या तुझे, उसकी दरकार नहीं ? सभी तो मानते तुझे ख़ुदा मेरी मुराद, क्यों पूरी नहीं ? रोशन कर इस जीवन को शून्य बनकर, ख़त्म होना में चाहता नहीं |
ये रेल की पटरी न जाने कहाँ से निकलती पर मेरे गाँव ये रूकती | आज में इसका मुसाफ़िर हूँ धमकते शहर तक में इसका हमसफ़र हूँ | गुज़रे ये उज्जड़े मकानों से वीरान खंडरो से | सिसकतीं आहटें दब गयीं हैं इस के शोर में | चमते जो गाँव थे दियों से जो रोशन थे आज अँधकार से सजे हैं | बेग़ैरत बदमाशों ने इनको लूटा है और हर नियम को तोडा है | शहर की ऊँची इमारतें कई आँखों का सपना है बुलंद इरादों ने, जो बुना है | आबाद है जीवन यहाँ जिसे संघर्ष ने सींचा है मज़बूत कंधो पर, ये टिका है | मुस्कुराहटों से सजा एक घर नज़र आता है तब जाके, अपना मकसद समझ आता है | फिर लौटे उन्नति वहाँ, जहाँ ग़रीबी का साया है | उन मासूमों को, अपनी मेहनत का हक़ मिले, जिन्होंने लोहा पीटकर, इन शहरों को सजाया है |