खोज परिश्रम की

ज़िन्दगी की तारीख़ में,
अपने समय की कीमत,
क्या आंकते हो ।
जिम्मेदारियों के बहाने,
क्या, हर रोज़,
खुदको सुनाते हो ।
नाकामयाबी से डरते हो,
इस सच को,
क्यों झुठलाते हो ।
अपने नादान ख्वाबों को,
जीवित रखने कि कोशिश,
हर रोज़ करते हो ।
केवल सोने की मोहर ही,
सफलता का एक,
न पैमाना हो ।
आंखों की चमक,
हसी की धनक,
उम्मीद की खनक,
इनका मोल, अनमोल हो ।
न हो झिझक,
अंजान भविष्य की ।
हो बस मिठास, हर कण में,
अपने परिश्रम की ।

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