सफर

एक मुसाफ़िर के लिए, शहर बेगाने हैं
उसके लिए तो, रास्ते ही अपने हैं
उसके कारवाँ  में, कई राही, जुड़े और बिछड़े हैं
एक पल के लिए, वो उसकी दुनिया है
क्षण में ही, वो बंधन टूटते हैं
इस सिलसिले ने, उसके दिल को दुखाया है
खिल खिलाते लोगों से फिर भी, वो आकर्षित होता है
नए रिश्तों से अब, वो डरता है
दोराहे पे, वो रुका है
एक ओर बसेरा है
दूसरी तरफ, ज़माना!

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