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इंकलाब

है सूरज इस जहाँ में, तो चमकती धूप, कभी न कभी तो होगी | है नमी जो बादलों में, तो खनकती बारिश, कभी न कभी तो होगी | हैं सितारें जो आसमान में, तो सुहानी रात, कभी न कभी तो होगी | है पहर अगर भोर की, तो सुनहरी सुबह, कभी न कभी तो होगी | है आग अगर सीने में, तो रौशनी, कभी न कभी तो होगी | है मंज़िल अगर आँखों में, तो तमन्ना पूरी, कभी न कभी तो होगी | है चुनौती अगर राहों में, तो जीत, कभी न कभी तो होगी | है बुलंदी अगर इरादों में, तो सफ़लता कदम, कभी न कभी तो चूमेगी | हाँ, थी बेड़ियाँ अब तक, ग़ुलामी की पर आज़ाद अब सोच, हमारी होगी | हाँ, थी सिसकियाँ अब तक, दबी दबी पर हुंकार अब ललकार की, हमारी होगी | हाँ, थी इरादों में बात अब तक, समझौते की पर ज़िंदाबाद अब इंकलाबी, हमारी होगी | हाँ, थी ख़्वाहिश अब तक, जीने की पर तमन्ना अब सरफ़रोशी की, हमारी होगी | हाँ, थी दुनिया अब तक, तुम्हारी पर बारी अब, भारतवर्ष की होगी |